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आज हम आपको ले चलेंगे एक अद्भुत और रहस्यमयी यात्रा पर – कामाख्या
रहस्यमयी शक्तिपीठ की यात्रा।
आसाम की वादियों में स्थित माँ कामाख्या देवी का यह मंदिर, अपनी
आध्यात्मिक शक्ति और प्राचीन परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है।आपकी यात्रा को और भी खास बनाने के लिए जुड़े रहिए Travel with
Latika के साथ।
चलिए, इस अद्भुत यात्रा की शुरुआत करते हैं ,
कामाख्या मंदिरभारत के असम राज्य के गुवाहाटी शहर में स्थित एक प्राचीन और पवित्र स्थल है। यह मंदिर शक्ति पीठों में से एक है और माँ कामाख्या को समर्पित है। इसकी धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता इसे विश्वभर में अद्वितीय बनाती है।
कामाख्या मंदिर का इतिहास
कामाख्या मंदिर का निर्माण 8वीं-9वीं शताब्दी में किया गया था। यह मंदिर तांत्रिक परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसका सबसे पुराना उल्लेख कामरूप क्षेत्र में मिलता है। इसे अहोम राजाओं द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था, खासकर 16वीं शताब्दी में राजा नर नारायण ने इस मंदिर को वर्तमान स्वरूप दिया।
मंदिर का नाम कामाख्या, देवी सती के कामदेव और शिव के साथ जुड़ाव को दर्शाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी सती ने योगाग्नि में अपने प्राण त्याग दिए थे, तो भगवान विष्णु ने उनके शरीर के टुकड़े करने के लिए सुदर्शन चक्र का उपयोग किया। कहा जाता है कि देवी सती की योनि इस स्थान पर गिरी थी, और इसीलिए इसे शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है।
मंदिर की वास्तुकला
कामाख्या मंदिर की वास्तुकला नीलांचल शैली में है। इसका मुख्य गुंबद अर्धगोलाकार है, और यह मंदिर पत्थरों और टेराकोटा की नक्काशी से सुसज्जित है। मंदिर के अंदर गर्भगृह है, जहाँ देवी की पूजा की जाती है। यहाँ कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक योनि रूपी पत्थर है जिसे माँ की शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
त्योहार और आयोजन
कामाख्या मंदिर में अंबुबाची मेला सबसे प्रसिद्ध उत्सव है। यह हर साल जून के महीने में मनाया जाता है और देवी के मासिक धर्म चक्र का प्रतीक है। यह तांत्रिक अनुष्ठानों और श्रद्धालुओं की भीड़ से भर जाता है। इसके अलावा दुर्गा पूजा और नवरात्रि के समय भी मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है।
कामाख्या मंदिर के अनसुने तथ्य
कामाख्या मंदिर भारत का एक ऐसा पवित्र स्थल है, जिसकी महिमा और रहस्य लोगों को अद्भुत अनुभव प्रदान करते हैं। यहाँ मंदिर से जुड़े कुछ अनसुने तथ्य दिए गए हैं, जो आपको आश्चर्यचकित कर देंगे:
1. मासिक धर्म से जुड़ी अनूठी पूजा
कामाख्या मंदिर में देवी के मासिक धर्म (अंबुबाची पर्व) को अत्यधिक पवित्र माना जाता है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ देवी के प्राकृतिक चक्र को मनाने के लिए वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस दौरान मंदिर के गर्भगृह के कपाट तीन दिनों के लिए बंद रहते हैं।
2. कोई मूर्ति नहीं है
कामाख्या मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। गर्भगृह में एक प्राकृतिक पत्थर है जो योनि (स्त्रीत्व) का प्रतीक है। यह पत्थर हमेशा पानी से भरा रहता है, जो भूमिगत जल स्रोत से आता है।
3. तंत्र साधना का केंद्र
कामाख्या मंदिर तंत्र साधना का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। यहाँ कई तांत्रिक साधक अपनी साधना पूरी करने के लिए आते हैं। मंदिर में होने वाली तांत्रिक पूजा इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है।
4. 51 शक्तिपीठों में विशेष स्थान
कामाख्या मंदिर 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहाँ देवी सती का योनि अंग गिरा था, जिसके कारण यह स्थान अत्यधिक पवित्र है।
5. मंदिर का पानी बदलता है रंग
मंदिर के गर्भगृह में बहने वाला पानी कभी–कभी लाल रंग का हो जाता है। इसे देवी के मासिक धर्म का प्रतीक माना जाता है। अंबुबाची पर्व के दौरान इस पानी को पवित्र मानकर भक्तों के बीच वितरित किया जाता है।
6. वास्तुकला का रहस्य
मंदिर की नीलांचल शैली की वास्तुकला अद्वितीय है। यह कहा जाता है कि मंदिर का गुंबद और संरचना तंत्र परंपरा के प्रतीकों से प्रेरित है।
7. प्राचीनता का प्रमाण
कामाख्या मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों, जैसे “कल्पसूत्र” और “योगिनी तंत्र,” में मिलता है। यह मंदिर 8वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था, लेकिन 16वीं शताब्दी में राजा नर नारायण ने इसे फिर से बनवाया।
8. देवी के भक्तों की अलग पहचान
कामाख्या के भक्तों में एक विशेष परंपरा है कि वे लाल कपड़े पहनते हैं और तांत्रिक अनुष्ठानों में हिस्सा लेते हैं। कहा जाता है कि यहाँ की पूजा विधियाँ भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करती हैं।
9. रहस्यमयी गर्भगृह
मंदिर का गर्भगृह भूमिगत है, और यहाँ जाने के लिए श्रद्धालुओं को सीढ़ियों से उतरना पड़ता है। गर्भगृह का वातावरण ठंडा और अंधकारमय रहता है, जो इसे रहस्यमय बनाता है।
10. पशु बलि की परंपरा
आज भी कामाख्या मंदिर में पशु बलि की परंपरा जीवित है। बलि के रूप में मुख्य रूप से बकरे की बलि दी जाती है। हालांकि, यह बलि गर्भगृह के बाहर दी जाती है।
11. असुर राजा नरकासुर की कथा
मंदिर के निर्माण को असुर राजा नरकासुर से भी जोड़ा जाता है। मान्यता है कि नरकासुर देवी कामाख्या के बहुत बड़े भक्त थे और उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
12. प्राकृतिक सौंदर्य
कामाख्या मंदिर नीलांचल पर्वत पर स्थित है, जो ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे है। यहाँ का प्राकृतिक दृश्य मनमोहक है, और यह स्थान ध्यान और आध्यात्मिकता के लिए भी आदर्श है।
कामाख्या मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति, तंत्र साधना, और पौराणिक कथाओं का जीवंत उदाहरण भी है। यह मंदिर अपनी पवित्रता और रहस्यमयी परंपराओं के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है।